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Wednesday 18 July 2012

अन्वेषणेन अपि अनुपलब्धा : छात्रा: सन्ति


संस्कृत महाविद्यालय का अस्तित्व खतरे में
रायपुर, 17 जुलाई। देववाणी की शिक्षा देने वाला प्रदेश का इकलौता संस्कृत महाविद्यालय ज्ञान का प्रकाश फैलाने विद्यार्थियों के लिए तरस रहा है। एक ओर जहां हिन्दी, अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रचार-प्रसार व सिखाने के लिए धन का व्यय किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर विश्व की तमाम भाषाओं की जननी संस्कृत अपनी ही धरती में दम तोडऩे की कगार पर है। स्कूल व महाविद्यालयों में अनिवार्य विषय के रूप में संस्कृत भाषा को महत्व नहीं देने तथा सरकारी नौकरियों की भर्ती में संस्कृत ज्ञान को शर्त के रूप में शामिल नहीं करने के कारण यह स्थिति निर्मित हुई है। हालत यह है कि नि:शुल्क शिक्षा देने के बाद भी संस्कृत महाविद्यालय को ढूंढने से भी विद्यार्थी नहीं मिल रहे हैं। छत्तीसगढ़ का एकमात्र संस्कृत कॉलेज इन दिनों अपने अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई लड़ रहा है। छात्रों की कमी से जूझते इस महाविद्यालय पर अब अस्तित्व का संकट गहराने लगा है। विगत वर्ष इस महाविद्यालय में कुल 294 छात्र संस्कृत का अध्ययन कर रहे थे पर वर्तमान में प्रवेश प्रारंभ होने के डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी कुल 15 छात्रों ने ही प्रवेश के लिए आवेदन किया है। महाविद्यालय का स्टॉफ, अध्यापकगण एवं प्राचार्य इसके अस्तित्व को लेकर गहरी चिंता में है। 2 अक्टूबर सन् 1955 को गांधी जयंती के अवसर पर इस महाविद्यालय का शुभारंभ किया गया था तथा वर्तमान भवन जो जी.ई. रोड में स्थित है का शिलान्यास 15 सितंबर 1956 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। विदित हो कि शासकीय दूधाधारी श्री राजेश्री महंत वैष्णव दास स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय प्रदेश का एकमात्र संस्कृत महाविद्यालय है जो रविशंकर शुक्ल विवि के अंतर्गत संघटक महाविद्यालय के रूप में मान्य तथा संबद्धता प्राप्त है। प्रवेश तथा अध्ययन शुल्क काफी कम होने के बाद भी छात्रों की संख्या इस महाविद्यालय में कम रहती है। इस शैक्षणिक वर्ष में तो यह महाविद्यालय अस्तित्व बचाए रखने के संकट से ही जूझ रहा है। इसका मुख्य कारण संस्कृत विषय के प्रति लोगों में उदासीनता तथा संस्कृत का रोजगारमूलक विषय न होना है जबकि बी.ए. क्लासिक्स अर्थात् स्नातक प्राच्य संस्कृत के लिए एक बार ही छात्रों से केवल आठ सौ रुपए की राशि ली जाती है। वहीं शासन के नियमों के कारण बी.ए. क्लासिक्स, प्राच्य संस्कृत, एम.ए.क्लासिक्स पूर्व एवं अंतिम कक्षाओं में शिक्षण शुल्क ही नहीं लिया जाता है। इस प्रकार नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था प्रदान करने वाला यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र महाविद्यालय है। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पी.सी. अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में छात्रों की संख्या बेहद कम है। छात्राओं को यहां पूर्णत: नि:शुल्क शिक्षा देने के बाद भी एक भी छात्रा ने प्रवेश नहीं लिया है। हालांकि अभी शिक्षाकर्मी सहित स्कूलों में संस्कृत शिक्षक की मांग के चलते कुछ लोग इस विषय में रुचि अवश्य ले रहे हैं पर उनमें भी संस्कृत माध्यम में ही परीक्षा होने को लेकर भ्रम की स्थिति है। इसलिए पर्याप्त संख्या में यहां प्रवेश नहीं ले पा रहे हैं। विवि प्रशासन द्वारा भी विद्यार्थियों को यह स्पष्ट नहीं किया जा  रहा है कि परीक्षा का माध्यम हिन्दी होगा या संस्कृत, प्रश्नपत्र हिन्दी में पूछे जाएंगे या संस्कृत में इसलिए प्रवेश पाने वाले छात्रों के मन में शंकाएं बनी हुई है। संस्कृत महाविद्यालय अपने छात्रों को सभी तरह की सुविधाएं प्रदान करता है। उन्हें पाठ्य सामग्री महाविद्यालय के ही ग्रंथालय से नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती है। इसके अतिरिक्त छात्र-छात्राओं के लिए छात्रावास की सुविधा भी है तथा समय-समय पर यहां अनेक आयोजन भी होते रहते हैं जो छात्रों के बौद्धिक तथा चारीत्रिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। समय -समय पर क्रीड़ा प्रतियोगिता सहित सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इन सबके बावजूद छात्रों की कमी से यहां के प्राध्यापकगण, स्टॉफ तथा प्राचार्य में गहरी चिंता व्याप्त है। प्राचार्य ने कहा कि इस कमी को दूर करने तथा अधिकाधिक छात्रों तक संस्कृत को पहुंचाने के लिए डिप्लोमा तथा रोजगारमूलक कोर्स प्रारंभ करने पर विचार किया जा रहा है। विवि से इसके लिए अनुमति मिलते ही अध्ययन प्रारंभ कर दिया जाएगा। संस्कृत दर्शन जैसे विषयों को भी यहां प्रारंभ करने पर विचार किया जा रहा है। उम्मीद है कि आगामी शैक्षणिक सत्र से इन सभी विषयों के प्रारंभ होने के बाद छात्रों की संख्या में वृद्धि होगी। हालांकि महाविद्यालय प्रशासन को इस बात पर अवश्य संतुष्टि है कि इस महाविद्यालय के द्वारा संस्कृत को बचाकर रखा गया है तथा अतिप्राचीन और दुर्लभ पांड़लिपियों को भी महाविद्यालय  द्वारा संरक्षित करके रखा गया है जो संस्कृत विषयक शोध छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है। संस्कृत के व्यापक प्रचार-प्रसार की कमी भी इस महाविद्यालय को उपेक्षा का शिकार बना रही है। कहने को तो संस्कृत बोर्ड का गठन किया गया है पर उसके द्वारा भी संस्कृत के प्रचार-प्रसार हेतु सार्थक तथा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया जा सका है। बहरहाल देववाणी कही जाने वाली संस्कृत भाषा की उपेक्षा से महाविद्यालय के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है अब आवश्यकता इस बात की है कि संस्कृत का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए वहीं इस विषय को रोजगार से जोड़े जाने की भी आवश्यकता महसूस की जा रही है |