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Wednesday 18 July 2012



अनहोनी को दावत देते ओवरलोड स्कूली वाहन

रायपुर, 10 जुलाई। नए शिक्षा सत्र के प्रारंभ होने के बाद इन दिनों निर्धारित संख्या से अधिक बच्चों को अपने वाहनों में बैठाए ऑटो तथा रिक्शे वाले राजधानी की सड़कों पर बेखौफ चल रहे हैं। वाहन शुल्क के नाम पर पालकों से मुंहमांगी कीमत वसूलने के बाद भी बच्चों की जान जोखिम में डालकर ऑटो अथवा रिक्शों में घर से स्कूल तथा स्कूल से घर लाये ले जाये जा रहे हैं। विद्यालय प्रशासन और वाहन चालकों की मनमानी का आलम यह है कि एक ऑटो में 15-17 बच्चे बैठा लेते हैं जबकि एक ऑटो में बमुश्किल 10 लोगों को ही बैठाया जा सकता है। ओवरलोड वाहन चलाना व केवल यातायात नियमों के खिलाफ है बल्कि ऐसा करना बच्चों के लिए बेहद खतरनाक भी है। इन मामलों में पुलिस की उदासीनता भी समझ से परे है। पुलिस द्वारा ओवरलोड स्कूली वाहनों पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा रही है इससे वाहन चालकों के साथ ही विद्यालय प्रशासन के भी हौसले बुलंद हैं। विदित हो कि अधिकांश स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों को लाने ले जाने के लिए स्कूल बस की सुविधा प्रदान की जाती है। ऐसी स्थिति में स्कूल प्रशासन की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह छात्र-छात्राओं को सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था सुनिश्चित करें। पर ओवरलोड वाहनों को देखकर स्पष्ट है कि स्कूल प्रशासन भी बच्चों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। इधर ट्रैफिक पुलिस तथा आरटीओ हमेशा इस मामले में चेकिंग के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। किसी भी तरह की सख्त कार्यवाई न वाहनचालकों पर की जाती है और न ही वाहनों को चलवाने वाले स्कूल प्रबंधन के खिलाफ। इसका परिणाम ऑटो पलटने तथा दुर्घटना के रूप में कई मामले सामने आ चुके हैं। पर न तो इससे वाहन चालकों और न ही स्कूल प्रशासन ने सबक लिया और न पुलिस प्रशासन और आरटीओ ने। हैरत की बात तो यह है कि बच्चों को स्कूल लाने ले जाने वाली अधिकांश गाडिय़ों के कागजातों का नवीनीकरण तथा वाहनों की चेकिंग भी नहीं कराई जाती जबकि आरटीओ के गाइडलाइन के अनुसार समय समय पर वाहनों का रखरखाव किया जाना अनिवार्य है। शहर में कई अनफिट तथा बिना नंबर वाले वाहनों को भी आसानी से देखा जा सकता है। इन सबके बाद भी पुलिस तथा आरटीओ की खामोशी समझ से परे है। ऐसे भी कई वाहन चालक हैं जिसके पास न तो लायसेंस हैं और न अन्य आवश्यक कागजात। और तो और विद्यालयों द्वारा इनसे अनुभव प्रमाण पत्र भी नहीं लिया जाता है जिससे कई ऐसे व्यक्ति भी वाहन चलाते देखे जा सकते हैं जो इस योग्य नहीं हैं। इससे लगातार अनहोनी की आशंका बनी रहती है। मामले का एक पहलू यह भी है कि पालकों द्वारा भी यह नहीं देखा जाता है कि जिस वाहन से उनका बच्चा स्कूल जा रहा है वह किस स्थिति में है या उसमें सवार बच्चों की संख्या कितनी है। पालकों द्वारा मुंहमांगी फीस अदा करने के बाद भी उनके खामोश रहने से भी स्कूल प्रशासन तथा वाहन चालकों को बल मिलता है। बहरहाल मोटी राशि फीस के रूप में वसूलने वाले विद्यालय प्रशासन द्वारा मासूमों की जान को जोखिम में डालकर पैसा कमाया जा रहा है। मासूमों की थोड़ी सी भी चिंता स्कूल प्रशासन को नहीं है। पुलिस तथा आरटीओ भी मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे हैं जबकि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने गाइडलाइन जारी किया है पर इसकी भी अनदेखी कर मासूमों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। शासन और प्रशासन की खामोशी भी शायद किसी अनहोनी का इंतजार कर रही है। आवश्यकता इस बात की है कि मासूमों के जीवन से जुड़े इस मामले पर तत्काल ठोस निर्णय लेकर कार्यवाही की जाए। 
सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन- >     स्पष्ट रूप से वाहन पर स्कूल का नाम और गाड़ी नंबर हो। >    बस सहित अन्य बड़े वाहनों में ड्राइवर के साथ क्लीनर का होना अनिवार्य है। >    फस्र्ट एड बॉक्स रखना अनिवार्य है। >    निर्धारित सीट संख्या से अधिक बच्चे न बैठाए जाएं। >    वाहन में अग्निशामक यंत्र लगा हो। >    बसों में स्पीड गवर्नर लगा हो। >    बसों सहित अन्य बड़े वाहनों में दो गेट और खिड़की लगा होना अनिवार्य है। >    अटेंडर का होना अनिवार्य है। >    फिटनेस साटिर्फिकेट का समय समय पर नवीनीकरण अनिवार्य है।